गाँधी जयंती पर मिशन अम्बर फाउंडेशन "दृष्टि से उज्जवल भविष्य तक" का कार्यक्रम अटल बिहारी बाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर केजीएमयू में दो चरण में सम्पन्न हुआ

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गाँधी जयंती पर मिशन अम्बर फाउंडेशन "दृष्टि से उज्जवल भविष्य तक" का कार्यक्रम अटल बिहारी बाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर केजीएमयू में दो चरण में सम्पन्न हुआ जिसमें चश्मा वितरण और सदभावना समारोह का आयोजन किया गया।
चेयरमैन वफ़ा अब्बास के मुताबिक कार्यक्रम का पहला चरण 12 बजे से शुरू हुआ जिसकी अध्यक्षता लखनऊ महापौर सुषमा खर्कवाल और मुख्य अतिथि डॉ. महेन्द्र सिंह पूर्व मंत्री उ.प्र. सरकार, सदस्य विधान परिषद की रही , इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि आनन्द द्विवेदी
अध्यक्ष, महानगर अंजनी कुमार श्रीवास्तव पूर्व विधायक, डॉ बिलाल नूरानी वरिष्ठ समाजसेवी मौजूद रहे।

वही दूसरा चरण 3 बजे से शुरू हुआ जिसमें बृजेश पाठक उप मुख्यमंत्री, विशिष्ट अतिथि नीरज बोरा विधायक लखनऊ, मुकेश शर्मा सदस्य विधान परिषद, मौलाना रजा हैदर जैदी प्रिन्सिपल हौज़े इल्मिया गुफरान माब, राजेश पाण्डेय यूपीडा व पूर्वाचल एक्सप्रेस-वे मोडल रिपोरिटी ऑफिसर एवं पूर्व आई.जी. शिरकत कर चश्मा वितरण कर सद्भावना समारोह में अपने विचार रक्खे।

अंबर फाउंडेशन के चेयरमैन वफा अब्बास ने बताया की रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की प्रेरणा से और हमारी अथक कोशिशों से अंबर फाउंडेशन के सभी प्रोजैक्ट जैसे निशुल्क नेत्र शिविर, चश्मा वितरण व ऑप्रेशन, होनहार बच्चों व ज़रूरतमंद परिवारों के बच्चों की निशुल्क शिक्षा, कलेक्टर बिटिया आईएएस पीसीएस कोचिंग कार्यक्रम का मिशन आगे बढ़ रहा है और नित नये परिवार इससे लाभान्वित हो रहे हैं।’’
इस मिशन के तहत इस वर्ष में 25000 लोगों की मुफत में आंखों की जांच करके चश्मा देने का, 3000 मोतिया बिन आदि का आप्रेशन करवाना और 1000 ग़रीब घर के बच्चों की स्कूल की फीस देना है।

वफ़ा अब्बास बताते है बच्चा जब पढ़ने बैठता, तो अपने सिर में दर्द बताता। माता पिता और टीचर इसको बहाना बता कर बच्चे को ढांटते, परन्तु सिर का दर्द था कि समाप्त ही नहीं होता था। ग़रीब घर के बच्चे के माता पिता को पता भी चल जाता कि सिर दर्द आंखों की कमज़ोरी के कारण है तो चश्मा बनवाना उनके लिए बड़ा खर्चा था।

पुराने लखनऊ का एक व्यस्क व्यक्ति दिन भर चिकनकारी के अड्डे पर बैठ अपनी आंखें गड़ाए सुई धागे से काम करता था। उसकी आंखों से पानी बहता, आंखें पोंछकर फिर काम में जुट जाता। दिन भर की नफरी पर दिन में देढ़ दो सो रुपया मिलना थे। उसको नहीं पता था कि सुई की नोक पर आंखें गड़ाए गड़ाए बीते वर्षों में उसकी निगाहें कमज़ोर हो गईं हैं। पता भी चल जाता तो चश्मा बनवाना एक बड़ा खर्चा प्रतीत होता था।

लखनऊ और आसपास के ऐसे असंख्य ग़रीब परिवारों के लिए असंख्य बच्चों की मुफत आंखों की जांच के बाद पता चला कि चश्मा लगना है तो अंबर फाउंडेशन ने मुफत में ही उनका चश्मा बनवा डाला। अब ऐसे बच्चे बेहतर तौर पर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे सकते हैं। जिन ग़रीबों की आंखे कमज़ोर थीं, उनका चश्मा बना तो उनकी न केवल जिंदगी बदल गई बल्कि उनकी आमदनी भी 20 प्रतिशत तक बढ़ गई।


जैसे जैसे ऐसे केसेज़ बढ़ने लगे कि चश्मा लगने से लोगों की जिंदगी बदलने लगी, उनकी आय बढ़ गई या बच्चों की पढ़ाई सुधर गई, वफा अब्बास इस काम में और डूबते चले गये। वो कहते हैंः ‘‘बस ऐसे ही हम इस काम में डूबते चले गये और ये मिशन बड़ा होता चला गया।

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